You are currently viewing जन्म के समय करण का महत्व: शुभ-अशुभ प्रभावों की विस्तृत जानकारी

जन्म के समय करण का महत्व: शुभ-अशुभ प्रभावों की विस्तृत जानकारी

पंचांग भारतीय ज्योतिष और काल गणना का एक महत्वपूर्ण अंग है, जिसके पांच मुख्य भाग होते हैं: तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण

करण क्या होते हैं?

करण तिथि का आधा भाग होता है। दूसरे शब्दों में, चंद्रमा और सूर्य के भोगांश के अंतर को 6 से भाग देने पर प्राप्त संख्या करण कहलाती है। एक तिथि 12 अंश की होती है, और जब चंद्रमा 6 अंश पूर्ण कर लेता है, तब एक करण पूरा होता है। इसलिए, प्रत्येक तिथि में दो करण होते हैं – एक पूर्वार्ध में और एक उत्तरार्ध में। कुल 11 प्रकार के करण होते हैं, जिन्हें दो श्रेणियों में बांटा गया है:

  • चर करण (गतिशील या अस्थिर करण): ये 7 होते हैं और एक निश्चित क्रम में दोहराए जाते हैं। ये हैं:
    • बव
    • बालव
    • कौलव
    • तैतिल
    • गर
    • वणिज
    • विष्टि (इसे ‘भद्रा’ भी कहते हैं)
  • स्थिर करण (निश्चित करण): ये 4 होते हैं और ये मासिक रूप से एक बार आते हैं। ये हैं:
    • शकुनि
    • चतुष्पाद
    • नाग
    • किस्तुघ्न

जन्म के समय करण के प्रभाव:

ज्योतिष शास्त्र में जन्म के समय जिस करण का प्रभाव होता है, वह व्यक्ति के स्वभाव, व्यक्तित्व, और जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करता है। प्रत्येक करण का अपना एक विशेष गुण और प्रभाव होता है। यहाँ कुछ करणों के सामान्य प्रभाव दिए गए हैं:

  • बव करण: इस करण में जन्मे जातक स्वस्थ, बलवान, दयालु और अपनी पहचान बनाने वाले होते हैं। ये बुद्धि से काम लेते हैं और अपने जीवन साथी और बच्चों की सुरक्षा के प्रति सजग रहते हैं। इन्हें शत्रु को परास्त करने की कला आती है।
  • बालव करण: इस करण में जन्मे व्यक्ति धार्मिक और प्रशंसा योग्य कार्य करने वाले होते हैं। ये अपनी सुरक्षा के प्रति जागरूक रहते हैं और भागदौड़ वाले कामों में सफलता पाते हैं।
  • कौलव करण: इस करण में जन्मे लोग चतुर, चालाक और अपनी वाणी से दूसरों को प्रभावित करने वाले होते हैं।
  • तैतिल करण: इस करण में जन्मे जातक अपने कार्यों को सिद्ध करने में निपुण होते हैं। इनकी वाणी मीठी होती है और ये दूसरों से आदरपूर्वक बात करते हैं।
  • गर करण: इस करण में जन्मे जातक सहनशील, धैर्यवान, और दूसरों की मदद करने वाले होते हैं। ये बातचीत में निपुण और वाद-विवाद में आनंद लेने वाले होते हैं। इन्हें भूमि या मकान से लाभ होता है और खेती से भी अच्छी आमदनी अर्जित करते हैं। ये न्यायप्रिय होते हैं और इन्हें नींद बहुत प्रिय होती है, इसलिए इन्हें कभी-कभी आलसी भी कहा जाता है।
  • वणिज करण: इस करण में जन्मे जातक व्यापार और वाणिज्य में कुशल होते हैं। ये बातचीत में निपुण होते हैं और धन कमाने में सफल होते हैं।
  • विष्टि (भद्रा) करण: इसे अशुभ करण माना जाता है और इसमें जन्म लेने वाले व्यक्तियों को कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि, कुछ परिस्थितियों में भद्रा लाभकारी भी हो सकती है।
  • शकुनि करण: इस करण में जन्मे जातक बुद्धिमान, चतुर और अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाले होते हैं।
  • चतुष्पाद करण: इस करण में जन्मे जातक गरीब हो सकते हैं लेकिन विलासी भी हो सकते हैं। ये अपने पास जो है, उससे अधिक दिखावा करते हैं और अपने ही कुल के लोगों से लड़ाई-झगड़ा करने वाले होते हैं।
  • नाग करण: इस करण में जन्मे जातक कुछ हद तक हठी और क्रोधी स्वभाव के हो सकते हैं।
  • किस्तुघ्न करण: इस करण में जन्मे जातक अपने कुल की रक्षा करने वाले होते हैं। ये एक साथ रहना पसंद करते हैं और मिलकर शत्रुओं पर हमला करते हैं। ये अपने से बलवान को भी परास्त कर देने की कला रखते हैं।

कौन से करण जन्म के समय शुभ-अशुभ होते हैं और क्यों?

अधिकांश करणों को सामान्यतः शुभ या तटस्थ माना जाता है, लेकिन विष्टि (भद्रा) करण को विशेष रूप से अशुभ माना जाता है।

  • शुभ करण:
    • बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किस्तुघ्न को सामान्यतः शुभ या कार्य विशेष के लिए उपयुक्त माना जाता है। इन करणों में जन्म लेने वाले व्यक्तियों के गुणों और प्रभावों को सामान्यतः सकारात्मक रूप में देखा जाता है। ये व्यक्ति अपने जीवन में सफलता प्राप्त करने और अपने लक्ष्यों को पूरा करने में सक्षम होते हैं।
  • अशुभ करण:
    • विष्टि (भद्रा) करण: यह करण सबसे अधिक अशुभ माना जाता है। ज्योतिष में भद्राकाल के दौरान कोई भी शुभ कार्य करने की मनाही होती है, क्योंकि माना जाता है कि इस समय किए गए कार्यों में बाधाएं आती हैं या उनके परिणाम नकारात्मक होते हैं। इस करण में जन्म लेने वाले व्यक्ति को जीवन में संघर्ष और परेशानियों का अधिक सामना करना पड़ सकता है। ऐसा माना जाता है कि भद्रा के प्रभाव से व्यक्ति के स्वभाव में उग्रता, क्रोध और जिद्दीपन आ सकता है, जिससे उसे रिश्तों और कार्यों में कठिनाई हो सकती है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जन्म के समय केवल करण ही नहीं, बल्कि तिथि, वार, नक्षत्र, योग, लग्न, ग्रहों की स्थिति और अन्य ज्योतिषीय योग भी व्यक्ति के जीवन पर गहरा प्रभाव डालते हैं। इसलिए, किसी भी व्यक्ति के संपूर्ण भविष्य और स्वभाव का विश्लेषण करने के लिए इन सभी कारकों का समग्र रूप से अध्ययन करना आवश्यक है।

Leave a Reply